Agnivesh Gurudev Agnivesh Gurudev

मैने ब्रम्हलीन पूज्य गुरुदेव भगवन से जिज्ञासा

ॐ नारायण हरि: — दोस्तो मैने ब्रम्हलीन पूज्य गुरुदेव भगवन से जिज्ञासा जाहिर की , कि ” प्रभु जब ब्यक्ति एक दम ब्याथित है ,दुखी है , तो वह अपने आराध्य को ही तो अपने दुख को कहेगा , इसमे” प्रतीक्षा “शब्द , कि प्रतीक्षा करो लेकिन स्वस्थ व सम भाव से , लेकिन प्रभु वहां तो दुख उस जीव को ब्याथित कर रहा है , फिर प्रतीक्षा ?
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गुरुदेव भगवान ने जो उत्तर दिया उसे रख रहा हूँ-
” इसमे दो बातें है ,
पहली बात — जो जीव का दुख दूर कर सकता है , जीव ये विश्वास रखता है , कर्म जीव का , फल जीव का , सामर्थ्य उस ईश्वर का , जो अपने सामर्थ्य से दूसरे के कर्मो को प्रभावित कर सकता है , जिसमे ऐसी दिव्य क्षमता है , तो इस क्षमता का भी उंसके अंदर आभाव नही होना चाहिए कि वह उस जीव के दुख से परिचित है उसमें ये भी सामर्थ्य हो।
दूसरी बात — ज्ञान यदि प्राप्त है तो उस आधार पर जीव को कभी भी कर्मो का फल , चाहे अच्छा चल रहा हो , चाहे बुरा चल रहा हो उसे भुगत लेना चाहिए और वो भी बड़े ही श्रद्धा भाव से , श्रद्धा के साथ इसलिए क्योकि दुख आधे से भी कम समझ मे आता है और प्रभावित भी आधा ही करता है , ये जितनी जल्दी बीत जाएगा सुख उतनी ही जल्दी आ जायेगा।
परमात्मा ने एक संबिधान बनाया है , अगर वह परमात्मा उस संबिधान को आज बदल दिया उस जीव के लिए फिर भी उस जीव जैसे अनेक लोग है , उन्हें भी अनेक दुख होंगे , वो भी परमात्मा के समक्ष आएंगे , कहेंगे कि उनका तो आपने दूर कर दिया और मुझपर ऐसी बिपदा है मेरी नही सुन रहे , फिर परमात्मा एक नया संबिधान उंसके लिए बनाएंगे ? तो फिर परमात्मा के संबिधान के अवलोकन के लिए भी तय परमात्मा ही है , तो मेरी समझ से जो अनेक है उस एक का अनुसरण करें ये अच्छा है , एक अनेक का अनुसरण करें ये विनाश का प्रतीक है।
भक्त जानता है कि परमात्मा के चरण में यदि हम पड़े रहे , समर्पित रहे , तो दुख भी शांत हो जाता है , इस प्रकार कोई भी बदबूदार पदार्थ हो , जब वह अग्नि के सुपुर्द चला जाता है तो उसके अंदर से वह बुरी गन्ध दूर चली जाती है , तो यह दुख भी गन्ध की ही भांति है , और जैसे ही वह जीव अपने आपको लय करता है परमात्मा में तो उसका दुख तो कम हो ही जाता है इसमें संदेह नही , और लयता के साथ , ईश्वर की इच्छा है उसको दूर भी कर सकते है।
ये दुख अकारण तो आया नही और उस रास्ते पर परमात्मा ने जाने को मना किया था , हमने उनकी बात टाली है , अनदेखी की है , तो उसके भुक्तभोगी हम ही तो होंगे।
परमात्मा ने न सिर्फ ऋषियों को भेजा , अप्रमेय करके बेद को अपौरुषेय करके हमारे घर तक पहुँचा दिया , इतनी दया उन्होंने दिखा दी कि हमारे पास उतना धन भी था कि उसको खरीद कर हम पढ़ सके , सत्संग में जाकर सुन सकते थे , इतना शोर होने के बाद भी अगर हम बहरे बने रहे तो यह दुख मेरे लिए उपयुक्त है , ये दुख ही हमे मिलना चाहिए था , मैं सुख का अधिकारी नही , हाँ यह जो अत्यंत कठिन नियम है ,संबिधान है , उसे जीव को भोग लेना चाहिए ।
ईश्वर को धन्यबाद हमे पहले देना चाहिए जो ढेर सारी चीजें वो हमें बिना मांगे ही दे रखी है , शुरुआत ही हम गलत ढंग से करते है , क्या है पहले हम यदि यहाँ से शुरू करे तो गलत क्या है , क्यो हम ईश्वर को दोष दे , उनसे मांगे।
सुप्रभात 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
ओम नारायण हरी | ॐ आदि गुरुवे नमः।

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