Agnivesh Gurudev Agnivesh Gurudev

गुरुभक्ति ही साधना, वही है सिद्धि

🔷 इस प्रसंग में एक बड़ी प्यारी कथा है। यह कथा उत्तर भारत के सुविख्यात सन्त बाबा नीम करौरी व उनके विदेशी शिष्य रिचर्ड के बारे में है। इन रिचर्ड को बाबा ने अपने शिष्य के रूप में अपनाया था और नाम दिया था रामदास। इन रामदास में अपने गुरु के प्रति भक्ति तो थी, किन्तु साथ कहीं सिद्धि-शक्ति की आकाक्षा भी छुपी थी। एक बार वह एक स्वामी जी के साथ दक्षिण भारत की यात्रा कर रहे थे। बातों ही बातों में उन्होंने अपनी सिद्धि-शक्ति की चाहत के बारे में स्वामी जी को बताया। स्वामी जी ने उन्हें एक शक्तिशाली शिव मंत्र की दीक्षा दी और बताया कि इस मंत्र का जाप करने से वह अपार सम्पत्ति व शक्ति का स्वामी हो जायेगा। रामदास को शक्ति लोभ तो था ही सो वह लगातार कई हफ्ते तक मंत्र का जाप करते रहे। इस मंत्र जाप के प्रभाव से शरीर के बाहर होने व सूक्ष्म शरीर से भ्रमण करने की शक्ति मिल गयी।

🔶 बस फिर क्या था रामदास का कौतुकी मन जाग उठा और सूक्ष्म शरीर से निकल कर भ्रमण करने लगे। इसमें उन्हें आनन्द आने लगा। इस क्रम में उनकी यात्रा अन्य सूक्ष्म लोक-लोकान्तरों में भी होने लगी। एक बार जब वह अपनी इस प्रक्रिया के दौरान किसी अन्य लोक में पहुँचे, तो वहाँ उन्हें अपने सद्गुरु बाबा नीम करौरी दिखाई दिये। रामदास को अचरज भी हुआ और हर्ष भी। वे हर्षोन्माद में बाबा नीम करौरी की ओर दौड़ पड़े। बाबा उस समय अपने तख्त पर एक कम्बल ओढ़े बैठे थे। उनके आने पर उन्होंने कम्बल से अपना मुँह ढक लिया और तीन बार ऐसी फूँक मारी जैसे कि कोई मोमबत्ती बुझा रहे हों। उनकी इस फूँक से रामदास को महसूस हुआ कि जैसे हर फूँक के साथ उनका शरीर फूलता जा रहा है, मानो उनकी किसी आन्तरिक नली में हवा भरी जा रही हो। तीसरी बार की फूँक के बाद रामदास ने स्वयं को अपने स्थूल शरीर में पाया और वह अपने उसी स्थान पर थे, जहाँ उनकी नियमित साधना हो रही थी। लेकिन इस समूची प्रक्रिया में एक अचरज घटित हुआ कि दक्षिण भारत की यात्रा में स्वामी जी ने उन्हें जो मंत्र दिया था, उसकी शक्ति समाप्त हो गयी थी। यही नहीं उनके मन में उस मंत्र के जपने की इच्छा भी मर गयी थी।

🔷 इस …. तमाशे से उनके मन में थोड़ी उलझन भी पैदा हुई और वह इस उलझन को सुलझाने के लिए अपने गुरुदेव बाबा नीम करौरी के पास गये। उन्हें आते हुए देखकर बाबा हँस पड़े और बोले-चल बता कैसी चल रही है तेरी साधना और कैसा है तू? उनके पूछने से कुछ ऐसा लग रहा था, जैसे वे कुछ भी जानते ही न हों। हालाँकि रामदास को मालूम था कि अन्तर्यामी गुरुदेव को सब कुछ ज्ञात है। फिर भी उन्होंने स्वामी जी के मंत्र की कथा, अपनी साधना और सूक्ष्म भ्रमण के अपने अनुभव के बारे में उन्हें ब्योरेवार बताया। साथ ही यह भी बताया कि किस तरह गुरुदेव बाबा नीम करौरी ने उनकी सारी शक्ति समाप्त कर दी।

🔶 रामदास के इस कथन पर बाबा बोले-बेटा! शिष्य तो बच्चा होता है, उसकी अनेकों चाहतें भी होती हैं और ये जो चाहते हैं—वह कभी ठीक होती हैं, तो कभी निरी बचकानी। गुरु को इन सब पर ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं उसका शिष्य भटक न जाये। कहीं उसे कोई नुकसान न हो। तुम्हारे साथ जो हुआ, वह तुम्हें नुकसान से बचाने के लिए हुआ। तुम्हारी साधना अभी कच्ची है। तुम्हारे सूक्ष्म शरीर में भी अभी पर्याप्त ऊर्जा नहीं है। ऐसी स्थिति में सूक्ष्म शरीर से भ्रमण करने पर अन्य लोकों के निवासी तुम्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं। यहाँ तक कि तुम्हें अपने यहाँ कैदकर सकते हैं। ऐसी स्थिति आने पर तुम्हारे सूक्ष्म शरीर का सम्बन्ध स्थूल शरीर से टूट जायेगा और न केवल तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी, बल्कि तुम्हारी तप-साधना भी अधूरी रह जायेगी। तुम्हारे साथ मैंने जो कुछ भी किया, वह तुम्हें इसी अप्रत्याशित स्थिति से बचाने के लिए किया। अपने सद्गुरु की इस कृपा को अनुभूत करके रामदास की आँखें छलक आयीं। सचमुच ही सद्गुरु के बिना भला और कौन सहारा है। इसलिए गुरुगीता के प्रत्येक मंत्र का सार यही है कि शिष्य को सतत अपने गुरुदेव का ध्यान व स्मरण करते रहना चाहिए। इस क्रम में ध्यान की अन्य विधियाँ भी हैं, जिसकी चर्चा अगले मंत्र में की गई है।

ॐ आदि गुरूवे नम :!ॐ नारायण हरि !

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