Agnivesh Gurudev Agnivesh Gurudev

जब आपका समर्पण भाव श्रद्धा भाव पूर्ण हो जाता है। सत्य में गुरु सर्वोपरि हो जाता है।

जब आपका समर्पण भाव श्रद्धा भाव पूर्ण हो जाता है। सत्य में गुरु सर्वोपरि हो जाता है। कोई भी समस्या आये उसमे विस्वास ना डिगे तब वो अवस्था आती है जब गुरु मंत्र दिया जाता है
इससे पहले इष्ट मन्त्र का जप करते हुए आगे बढ़ते है।
जब गुरु मंत्र मिल जाता है तब शिष्य का भाव होंता है सभी कुछ गुरु है।
गुरु को ही सबकुछ मानकर आगे बढ़ा जाता है,जब शिष्य समर्पण भाव को भी पार कर जाता है तब जो गुरु ने कहा वो प्रथम होता है शिष्य के लिए अन्य कोई कार्य नही। सभी सबंधो से ऊपर जब गुरु लगने लगे । गुरु के बिना सबकुछ अधूरा लगे तब गुरु परम्परा में दीक्षा होती है।
गुरु के ऊपर शिष्यों कर्मों का प्रभाव पड़ता है।
अगर शिष्य गलत मार्ग पर जाता है तो दोष गुरु को भी लगता है।
गुरु से प्राप्त ज्ञान का गलत प्रयोग कोई शिष्य करता है तो इसका उत्तरदायी गुरु भी होता है। इसलिए अपने कर्मो पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यही गुरु शिष्य परम्परा होती है।
लेकिन अभी तो गुरु से पहले सांसारिक कार्य और संसार आता है। किसी को धन की चाह हो गयी, किसी को शक्ति की चाह हो गयी, किसी को सम्मान की चाह हो गयी, किसी को सबसे बड़ा अपने आपको दिखाने की चाह हो गयी।
जब आगे बढ़ते है तो शिष्य में भाव आ जाते है अब तो प्रभु दिखने लगे गए बात होने लग गयी, सासांरिक समस्या भी खत्म हो गयी अब गुरु की क्या जरूरत है। ऐसी अवस्था मे गुरु बन्धन लगने लगता है क्योकि कुछ भी करने से पूर्व गुरु आज्ञा लेनी पड़ती है, गलत कार्य नही करने देता गुरु।
फिर ऐसी अवस्था मे शिष्य गुरु को छोड़कर चल देता है
लेकिन गुरु छोड़ने के बाद वो पूर्णिमा तिथि का सा दिखने वाला चन्द्र अमावश्या की तिथि में कब परिवर्तित हो जाता है पता ही नही लगता।
क्योकि गुरु का अपमान करने वालो का गुरु को छोड़ने वालो का कही पर भी स्थान नही होता। कुलदेव, पितृदेव, इष्टदेव सब साथ छोड़ जाते है। गुरु शिष्य परम्परा को जो जानता है वो बहुत सोच विचार करके शिष्य बनाता है।
गुरु को दिन रात चिंता रहती है सभी की यात्रा कैसे बढ़ानी है कैसे आगे ले जाना है। गुरु बनना बहुत सरल है लेकिन गुरु के कर्तव्य को पूर्ण करना बहुत कठिन है। अभी तो हम सांसारिक समस्याओ को लेकर चिंतित रहते है। लेकिन जब हम अपनी यात्रा को लेकर चिंतित रहने लगेंगे तब ही आगे बढ़ पाएंगे।
संसारिकता से निकलना बहुत कठिन कार्य है, ये जो ये कर जाता है प्रभु के निकट पहुच जाता है।
ये संसार ही है जो निकलने नही देता बांधे रखता है। निकलना भी चाहो तो मोह का बन्धन डाल देता है, लेकिन क्या किसी के चले जाने से किसी की जिंदगी रुक जाती है।
हर रोज कितनी ही मृत्यु होती है किसी की बहन, किसी की माँ, किसी का बेटा।
आज हम में से किसी की मृत्यु हो जाती है कुछ दिन हमारा परिवार दुख मनाता है। इसके बाद वो फिर से अपने जीवन मे ढ़ल जाएंगे। जिसके लिए हम पूर्ण जीवन व्यर्थ कर देते है उनके लिए हमारा महत्व कुछ दिन का रहता है
आज आप मे से कोई घर छोड़ दे और महीने बाद जाकर देखे
सब सामान्य मिलेगा। सब अपने जीवन मे व्यस्त मिलेंगे। यही जीवन है।
ॐ नारायण हरि ! ॐ आदि गुरूवे नम :!

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गुरु का जीवन में बहुत ही अधिक महत्व है चाहे वो लोग सांसारिक हो चाहे सन्यासी गुरु सबको बनाना चाहिए ।

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